अर्जुन मेरे मन का गांडीव छोड़े खड़ा था रेप सोंग
अर्जुन मेरे मन का गांडीव छोड़े खड़ा था रेप सोंग
क्या मुर्दे जैसे जीवन हैं,
जो इंद्री जैसा चाहे वैसा डाउन कर दे,
जैसा चाहे वो हमे शोक देदे दुख देदे,
थोड़ा सा साहसी बनो,
तुम भगवान के अंश हो,
तुम कुछ भी कर सकते हो,
कुछ भी।
अर्जुन मेरे मन का गांडीव छोड़े खड़ा था,
पथ भ्रष्ट रथ तले सत्य कुचला पड़ा था,
स्वयं के ही दोष भांति तीर लगे भीष्म से,
आत्मा थी खंड पड़ी जीवन मरण प्रश्न से।
मन के महाभारत में ना घोषणा दे शंख,
रणभूमि में चेतना का हो चला था अंत,
उसी क्षण दृष्टि मुझपे पड़ी दिव्य गुरु की,
वो द्वारिका से आए कृष्ण रूप को बदल।
वाणी ने जो स्पर्श किया ग्रंथ पाया मन,
सूखी आत्मा में ज्ञान भरे पुनः रंग,
श्री प्रेमानंद जी महाराज लगाम थामे जीवन की,
जन्मों के उत्तर दे दिए भागवत गीता बन।
वो बोले हृदय टूटे तो बस प्रभु को पुकार,
अंतःकरण में अवतरित हो कृष्ण हर बार,
उन आंखों में जो तेज़ था तेज़ नहीं वो वेद था,
काम क्रोध शत्रु राधा नाम से मैं भेदता।
जन्मों से वो जाने मुझे वाणी से यूं लगा,
मुझमें जो था झूठा उसका हरण सारा करा,
महाराज जी वो कृष्ण हैं,
जो हर युग में अवतरित होकर,
गिरते पार्थ को युद्ध में पुनः करते खड़ा।
होगा वही प्यारे जो निश्चित हो चुका है,
अब उस निश्चय को,
अगर कोई टाल सकता हैं,
तो एक महान शक्ति है,
राधा राधा राधा राधा राधा।
द्वापर की कहानी का अध्याय यहां मिला,
वो आए लगा जीवन में धर्म ने जन्म लिया,
हृदय मेरा द्वापर का कोई द्वारिका सा है अब,
रहते इसमें कृष्ण पीले कपड़े पहने कान्हा।
हारू तो वो गीता पाठ मन में आ सुनाते हैं,
अदृश्य एक रथ पे मुझे माधव नज़र आते हैं,
हाथ का गांडीव मेरा माला बनके आया,
महाराज जी ने मुझमें एक तपस्वी को जगाया।
संसार से वैराग्य एकान्तिक भागवत स्वर,
गुरु कृपा से हर पाप त्यागे मेरा मन,
84 लाख जन्मों से यूं भटकते भटके ज्ञात हुआ,
मेरा वास्तविक वृंदावन ही है घर।
छल से चलते तीर मुझपे आके बनते माला वो,
जाना है निकुंज मुझे जन्म ना दोबारा हो,
लोभ मोह शकुनि एक पासे रोज़ फेंकता,
गुरु चरण आश्रय तो दुख सुख सब एक सा।
बन रहा जो मैं वो सब महाराज जी की छाया,
आत्मचिंतन करके पाया माया ना मैं काया,
पतन किया द्वेष का अंदर नया युग है,
द्वापर के कृष्ण मुझे मिले कलियुग में।
छिने बाबा चित्त अब मैं आत्मा से नया,
एकान्तिक वार्तालाप दृश्य वैकुंठ का बना,
महाराज जी वो कृष्ण हैं,
जो हर युग में अवतरित होकर,
गिरते पार्थ को युद्ध में पुनः करते खड़ा।
सोच बेमतलब भय,
बेमतलब संशय,
बिलकुल नहीं बिलकुल नहीं,
बहुत कीमती समय बहुत कीमती जीवन,
इसको बहुत अच्छे काम में लगाओ,
उत्साह प्राप्त पुरुष सब कुछ कर सकता है,
निरुत्साही कितना भी बलवान हो,
किसी काम का नहीं रह जाता।
जो इंद्री जैसा चाहे वैसा डाउन कर दे,
जैसा चाहे वो हमे शोक देदे दुख देदे,
थोड़ा सा साहसी बनो,
तुम भगवान के अंश हो,
तुम कुछ भी कर सकते हो,
कुछ भी।
अर्जुन मेरे मन का गांडीव छोड़े खड़ा था,
पथ भ्रष्ट रथ तले सत्य कुचला पड़ा था,
स्वयं के ही दोष भांति तीर लगे भीष्म से,
आत्मा थी खंड पड़ी जीवन मरण प्रश्न से।
मन के महाभारत में ना घोषणा दे शंख,
रणभूमि में चेतना का हो चला था अंत,
उसी क्षण दृष्टि मुझपे पड़ी दिव्य गुरु की,
वो द्वारिका से आए कृष्ण रूप को बदल।
वाणी ने जो स्पर्श किया ग्रंथ पाया मन,
सूखी आत्मा में ज्ञान भरे पुनः रंग,
श्री प्रेमानंद जी महाराज लगाम थामे जीवन की,
जन्मों के उत्तर दे दिए भागवत गीता बन।
वो बोले हृदय टूटे तो बस प्रभु को पुकार,
अंतःकरण में अवतरित हो कृष्ण हर बार,
उन आंखों में जो तेज़ था तेज़ नहीं वो वेद था,
काम क्रोध शत्रु राधा नाम से मैं भेदता।
जन्मों से वो जाने मुझे वाणी से यूं लगा,
मुझमें जो था झूठा उसका हरण सारा करा,
महाराज जी वो कृष्ण हैं,
जो हर युग में अवतरित होकर,
गिरते पार्थ को युद्ध में पुनः करते खड़ा।
होगा वही प्यारे जो निश्चित हो चुका है,
अब उस निश्चय को,
अगर कोई टाल सकता हैं,
तो एक महान शक्ति है,
राधा राधा राधा राधा राधा।
द्वापर की कहानी का अध्याय यहां मिला,
वो आए लगा जीवन में धर्म ने जन्म लिया,
हृदय मेरा द्वापर का कोई द्वारिका सा है अब,
रहते इसमें कृष्ण पीले कपड़े पहने कान्हा।
हारू तो वो गीता पाठ मन में आ सुनाते हैं,
अदृश्य एक रथ पे मुझे माधव नज़र आते हैं,
हाथ का गांडीव मेरा माला बनके आया,
महाराज जी ने मुझमें एक तपस्वी को जगाया।
संसार से वैराग्य एकान्तिक भागवत स्वर,
गुरु कृपा से हर पाप त्यागे मेरा मन,
84 लाख जन्मों से यूं भटकते भटके ज्ञात हुआ,
मेरा वास्तविक वृंदावन ही है घर।
छल से चलते तीर मुझपे आके बनते माला वो,
जाना है निकुंज मुझे जन्म ना दोबारा हो,
लोभ मोह शकुनि एक पासे रोज़ फेंकता,
गुरु चरण आश्रय तो दुख सुख सब एक सा।
बन रहा जो मैं वो सब महाराज जी की छाया,
आत्मचिंतन करके पाया माया ना मैं काया,
पतन किया द्वेष का अंदर नया युग है,
द्वापर के कृष्ण मुझे मिले कलियुग में।
छिने बाबा चित्त अब मैं आत्मा से नया,
एकान्तिक वार्तालाप दृश्य वैकुंठ का बना,
महाराज जी वो कृष्ण हैं,
जो हर युग में अवतरित होकर,
गिरते पार्थ को युद्ध में पुनः करते खड़ा।
सोच बेमतलब भय,
बेमतलब संशय,
बिलकुल नहीं बिलकुल नहीं,
बहुत कीमती समय बहुत कीमती जीवन,
इसको बहुत अच्छे काम में लगाओ,
उत्साह प्राप्त पुरुष सब कुछ कर सकता है,
निरुत्साही कितना भी बलवान हो,
किसी काम का नहीं रह जाता।
Mere Gurudev (2.0) - Vayuu | Shri Premanand Ji Maharaj Song | Hindi Rap
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स्वामी प्रेमानंद जी महाराज की कृपा से जीवन को नया अर्थ मिला है। जब भीतर अर्जुन की तरह हम भी अपने गांडीव को त्याग चुके थे तब महाराज जी कृष्ण रूप में आए और गीता का संदेश देकर हमें पुनः जागृत किया। उन्होंने न केवल हमें हमारी त्रुटियों का बोध कराया बल्कि आत्मा को शुद्ध कर प्रेम और भक्ति की ओर मोड़ा। उनकी वाणी में वेदों का तेज है, जो मन को बदल देती है और मोह माया के जाल को काट देती है। महाराज जी ने हमें दिखाया कि हृदय टूटा हो तो प्रभु का नाम ही औषधि है। उनकी कृपा से संसार का वैराग्य सरल हो गया और भागवत हमारे जीवन का केंद्र बन गई। उन्होंने हमें राधा नाम की गूढता समझाई जिससे काम-क्रोध जैसे शत्रुओं पर विजय मिली। वे कलयुग में वही कृष्ण हैं, जो हर अर्जुन को युद्धभूमि में खड़ा करते हैं। अब हर संकट में उनकी वाणी गीता बनकर मार्ग दिखाती है। उन्होंने हमें सिखाया कि सोच और भय का कोई स्थान नहीं उत्साह ही सबसे बड़ा बल है।
श्रीकृष्ण और गुरु की कृपा से अर्जुन के मन के महाभारत का यह भाव हृदय को एक ऐसी जागृति और भक्ति से भर देता है, जो भक्त को सांसारिक भय, संशय और पतन से मुक्त कर सत्य और प्रभु के मार्ग पर ले जाता है। यह भजन उस अटल विश्वास को दर्शाता है कि जब मन का गांडीव छूट रहा था और सत्य रथ तले कुचला जा रहा था, तब कृष्ण रूपी गुरु की दिव्य दृष्टि ने भक्त की आत्मा को ज्ञान की रंग से पुनर्जनन दिया। श्री प्रेमानंद जी महाराज की वाणी ने गीता बनकर भक्त के जीवन की लगाम थामी, उसे राधा नाम से काम-क्रोध जैसे शत्रुओं को भेदना सिखाया। यह भक्ति भक्त को आत्मचिंतन और प्रभु की पुकार में डूबने की प्रेरणा देती है।
राधा नाम की महान शक्ति और गुरु की कृपा से भक्त का हृदय द्वारिका सा बन जाता है, जहाँ पीतांबरधारी कान्हा वास करते हैं। यह भाव उस गहरे विश्वास को व्यक्त करता है कि गीता पाठ और गुरु का आश्रय भक्त को वैराग्य और एकांतिक भक्ति की ओर ले जाता है, जिससे वह 84 लाख जन्मों की भटकन से मुक्त होकर वृंदावन को अपना वास्तविक घर पाता है। महाराज जी की छाया में भक्त माया और काया से परे आत्मा के स्वरूप को जान लेता है, और लोभ-मोह जैसे पासों को त्यागकर सुख-दुख को एक समान देखता है। यह प्रेम और समर्पण भक्त को सदा कृष्ण के चरणों में लीन रखता है, जिससे उसका जीवन उनकी कृपा और प्रेम की रोशनी से सदा चमकता रहता है।
राधा नाम की महान शक्ति और गुरु की कृपा से भक्त का हृदय द्वारिका सा बन जाता है, जहाँ पीतांबरधारी कान्हा वास करते हैं। यह भाव उस गहरे विश्वास को व्यक्त करता है कि गीता पाठ और गुरु का आश्रय भक्त को वैराग्य और एकांतिक भक्ति की ओर ले जाता है, जिससे वह 84 लाख जन्मों की भटकन से मुक्त होकर वृंदावन को अपना वास्तविक घर पाता है। महाराज जी की छाया में भक्त माया और काया से परे आत्मा के स्वरूप को जान लेता है, और लोभ-मोह जैसे पासों को त्यागकर सुख-दुख को एक समान देखता है। यह प्रेम और समर्पण भक्त को सदा कृष्ण के चरणों में लीन रखता है, जिससे उसका जीवन उनकी कृपा और प्रेम की रोशनी से सदा चमकता रहता है।
Artist :- Vayuu
Song :- Mere Gurudev (2.0) (पूज्य गुरुदेव भगवान)
Prod/Mix/Master :- Vayuu
Poster :- Poetic KC
video :- अज्ञात
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