अलख निरंजन जय जय पौणाहारी
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
एक दिन आ के माता रतनो,
सुन ले बाल गुसाईं,
आह ले पकड़ ले चिमटा पूरी,
गऊएं साथ लिआई कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
मौंधे झोली रखी जोगी ने,
हाथ में चिमटा पकड़ा,
ओ गऊएं लाईं मोहरे मोहरे,
बनखंडी नूं तुरिया कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
गऊएं चारे खेल रचावे,
नाले नाम जपावे,
ओ धूणा ला के साथ इश्क दे,
सब को भेद सिखावे कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
एक दिन गऊएं सारी जा के,
विच फसलों में वड़ियां,
पिंड वाले करने विचारें,
किहने नुकसान है करियां कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
एक दिन सारे मता पका के,
माँ रतनो दे आए,
ओ पाली तेरे खेत उजाड़े,
ओहनों वेखन आए कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
बोली मारी मेहणे देवे,
रतनो बाल गुसाईं,
लस्सी रोटी चुक ले सारी,
नाले दूध मलाई कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
रतनो दी गल्ल सुनके बाबा,
मन में गुस्सा आया,
बारह साल का जो कुछ कर्जा,
सारा मुक चुकाया कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
एक दिन आ के माता रतनो,
सुन ले बाल गुसाईं,
आह ले पकड़ ले चिमटा पूरी,
गऊएं साथ लिआई कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
मौंधे झोली रखी जोगी ने,
हाथ में चिमटा पकड़ा,
ओ गऊएं लाईं मोहरे मोहरे,
बनखंडी नूं तुरिया कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
गऊएं चारे खेल रचावे,
नाले नाम जपावे,
ओ धूणा ला के साथ इश्क दे,
सब को भेद सिखावे कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
एक दिन गऊएं सारी जा के,
विच फसलों में वड़ियां,
पिंड वाले करने विचारें,
किहने नुकसान है करियां कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
एक दिन सारे मता पका के,
माँ रतनो दे आए,
ओ पाली तेरे खेत उजाड़े,
ओहनों वेखन आए कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
बोली मारी मेहणे देवे,
रतनो बाल गुसाईं,
लस्सी रोटी चुक ले सारी,
नाले दूध मलाई कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
रतनो दी गल्ल सुनके बाबा,
मन में गुस्सा आया,
बारह साल का जो कुछ कर्जा,
सारा मुक चुकाया कहिंदा,
अलख निरंजन जय जय पौणाहारी।
Alakh Niranjan Jai Jai Paunahari-Aulakh Niranjan Jai Jai Paunahari - Jai Pita Ji di - Jai Baba Balak Nath ji di
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पौणाहारी
बाबा की महिमा अपरम्पार है। वे ईश्वर के सच्चे भक्त थे और अलख निरंजन का
जाप करते रहते थे। जब माता रतनो ने उन्हें गायें सौंपीं, तो उन्होंने
उन्हें प्रेम से पाला और साथ ही भक्ति में लीन रहे। एक बार गायें खेतों में
घुस गईं जिससे गांव वालों को नुकसान हुआ। माता रतनो ने जब यह बात कही, तो
बाबा को क्षणिक क्रोध आया। परंतु उन्होंने किसी से कोई तकरार नहीं की।
बल्कि उन्होंने 12 वर्षों से जो कर्ज लिया था वह तुरंत चुका दिया। यह घटना
दर्शाती है कि सच्चे संत बिना किसी अपेक्षा के जीवन जीते हैं और जब समय आता
है तो अपनी मर्यादा और जिम्मेदारी निभाने में पीछे नहीं हटते। पौणाहारी
बाबा की यह विनम्रता, भक्ति और आत्मबल हमें जीवन में सच्चा मार्ग दिखाते
हैं।