शरद पूनम की रात सुहानी कान्हा बंसी
शरद पूनम की रात सुहानी कान्हा बंसी बजाये रे
शरद पूनम की रात सुहानी,
कान्हा बंसी बजाएं रे,
धुन सुन दौड़े बृज की बालायें,
सुध बुध बिसराई रे।
रास रचे बृज के गलियारों में,
हर गोपी संग श्याम सलोना,
नाचे झूमे प्रेम मगन सब,
जागी मन में कोई भावना,
मन ही मन हर गोपी इतराये,
मैं हीं कृष्ण की प्रियात्मा,
जादू ऐसा हर एक समझे,
बस मुझ पर ही रीझे कान्हा,
ओ रे कान्हा कहां छिपे हो,
अंखियां नीर बहाएं रे,
तुम बिन सूना सारा वृंदावन,
हम कैसे धीर बंधाये रे,
लौट आओ बंसी वाले,
अब और ना तरसाओ रे।
सूना छोड़ गए मधुबन को,
हम व्याकुल चहूं और फिरें,
पूछे लतिका तरुवर से हम,
पूछे यमुना जल लहरें,
हे वनचर पशु पक्षी बोलो,
देखा क्या तुमने श्याम कहीं,
कभी चाल चलें तेरी जैसे,
कभी तेरी मुरली धुन भरी,
लीला तेरी कर कर रोएं,
तुम बिन लागे कुछ ना सही,
ओ रे कान्हा कहां छिपे हो,
अंखियां नीर बहाएं रे,
तुम बिन सूना सारा वृंदावन,
हम कैसे धीर बंधाये रे,
लौट आओ बंसी वाले,
अब और ना तरसाओ रे।
प्राण हमारे अटके तुम में,
तुम ही जीवन आधार हो,
विरह अगन में जलती है रतिया,
नैना बरसे धार हो,
हम दासी चरणन की तेरी,
यूं मुख हमसे मोड़ो ना,
तुम ही तो सर्वस्व हमारे,
प्रेम की डोरी तोड़ो ना,
है विनती सुन लो हमारी,
और हमें तड़पाओ ना,
ओ रे कान्हा कहां छिपे हो,
अंखियां नीर बहाएं रे,
तुम बिन सूना सारा वृंदावन,
हम कैसे धीर बंधाये रे,
लौट आओ बंसी वाले,
अब और ना तरसाओ रे।
प्रेम की पीड़ा सुन गोपियों की,
द्रवित हुए नंदलाला,
प्रकट भये फिर बीच सखी,
मनमोहन बंसी वाला,
बोले प्रेम निभाने आया था,
तुम बिन मैं भी हूं आधा,
सदा तुम्हारे साथ रहूं मैं,
तुम ही मेरी राधा।
कान्हा बंसी बजाएं रे,
धुन सुन दौड़े बृज की बालायें,
सुध बुध बिसराई रे।
रास रचे बृज के गलियारों में,
हर गोपी संग श्याम सलोना,
नाचे झूमे प्रेम मगन सब,
जागी मन में कोई भावना,
मन ही मन हर गोपी इतराये,
मैं हीं कृष्ण की प्रियात्मा,
जादू ऐसा हर एक समझे,
बस मुझ पर ही रीझे कान्हा,
ओ रे कान्हा कहां छिपे हो,
अंखियां नीर बहाएं रे,
तुम बिन सूना सारा वृंदावन,
हम कैसे धीर बंधाये रे,
लौट आओ बंसी वाले,
अब और ना तरसाओ रे।
सूना छोड़ गए मधुबन को,
हम व्याकुल चहूं और फिरें,
पूछे लतिका तरुवर से हम,
पूछे यमुना जल लहरें,
हे वनचर पशु पक्षी बोलो,
देखा क्या तुमने श्याम कहीं,
कभी चाल चलें तेरी जैसे,
कभी तेरी मुरली धुन भरी,
लीला तेरी कर कर रोएं,
तुम बिन लागे कुछ ना सही,
ओ रे कान्हा कहां छिपे हो,
अंखियां नीर बहाएं रे,
तुम बिन सूना सारा वृंदावन,
हम कैसे धीर बंधाये रे,
लौट आओ बंसी वाले,
अब और ना तरसाओ रे।
प्राण हमारे अटके तुम में,
तुम ही जीवन आधार हो,
विरह अगन में जलती है रतिया,
नैना बरसे धार हो,
हम दासी चरणन की तेरी,
यूं मुख हमसे मोड़ो ना,
तुम ही तो सर्वस्व हमारे,
प्रेम की डोरी तोड़ो ना,
है विनती सुन लो हमारी,
और हमें तड़पाओ ना,
ओ रे कान्हा कहां छिपे हो,
अंखियां नीर बहाएं रे,
तुम बिन सूना सारा वृंदावन,
हम कैसे धीर बंधाये रे,
लौट आओ बंसी वाले,
अब और ना तरसाओ रे।
प्रेम की पीड़ा सुन गोपियों की,
द्रवित हुए नंदलाला,
प्रकट भये फिर बीच सखी,
मनमोहन बंसी वाला,
बोले प्रेम निभाने आया था,
तुम बिन मैं भी हूं आधा,
सदा तुम्हारे साथ रहूं मैं,
तुम ही मेरी राधा।
O Re Kanha- ओ रे कान्हा : A Divine Essence Of Gopi Geet | Jai Shree Krishna | Radha Krishna Bhajan Sharad Poonam Ki Raat Suhaani Kanha Bansi Bajaye Re
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सुंदर भजन में शरद पूनम की रात का मनमोहक चित्र है, जहाँ श्रीकृष्णजी की बंसी की मधुर धुन हर गोपी के मन को खींच लेती है। वह धुन इतनी मधुर है कि बृज की बालाएँ सब कुछ भूलकर बस उनके पास दौड़ पड़ती हैं, यह दिव्य प्रेम है। प्रेम का आलम है, जो मन को पूरी तरह रंग देता है। जैसे कोई प्यासा पानी की तलाश में भटकता है, वैसे ही गोपियाँ श्रीकृष्णजी के दर्शन को तरसती हैं। रास की वह रात ऐसी है, जहाँ हर गोपी के मन में एक मीठी सी भावना जागती है। हर एक को लगता है कि श्रीकृष्णजी का प्रेम बस उसी के लिए है। यह प्रेम का जादू है, जो हर दिल को अपने रंग में रंग देता है। लेकिन जब श्रीकृष्णजी कहीं छिप जाते हैं, तो वृंदावन सूना पड़ जाता है। गोपियाँ उनकी राह देखते हुए आँसुओं में डूब जाती हैं, जैसे कोई अपने सबसे प्रिय को खोने के दर्द में तड़पता हो।