ब्रह्मांड की प्रथम प्रेम की गाथा तुम्हें रेप सोंग
ब्रह्मांड की प्रथम प्रेम की गाथा तुम्हें सुनाता हूं हिंदी रेप सोंग
ब्रह्मांड की प्रथम प्रेम की,
गाथा तुम्हें सुनाता हूं,
अमर कथा ये शिव शक्ति की,
तुमको याद दिलाता हूं,
प्रजापति दक्ष के घर में,
दुर्गा ने अवतार लिया,
मात पिता ने सभी पुत्रियों,
से बढ़के उसे प्यार दिया,
अक्ल बुद्धि से परिपूर्ण,
जो मति से करती काम,
सुंदर चंचल सी कन्या का,
सत्ती पड़ गया नाम,
प्रजापति दक्ष करते केवल,
विष्णु की पूजा,
विष्णु जी के अलावा कोई,
आराध्य ना उनका दूजा।
जैसे ही माता बड़ी हुई,
कर बैठी शिव से प्यार,
पर प्रजापति ने शादी से,
कर दिया साफ़ इनकार,
पुत्री को समझाने लगे,
तू है महलों की रानी,
क्यों वनवासी के पीछे पड़ी,
मुझे होती है हैरानी,
यहां मखमल का बिस्तर है बेटी,
कांटो पर वहां सोयेगी,
तू बर्फ में थर्र थर्र कांपेगी,
हमे याद करके फिर रोयेगी,
जो ख़ुद भूखा बैठा है क्या,
तुझको ख़ाक खिलाएगा,
अघोरी है श्मशान वासी,
वो तुझको राख पिलायेगा।
लाख ताने सुनकर भी माता,
किसी की एक ना मानी,
शिव को ही पति वो मान बैठी,
शादी करने की ठानी,
कठोर तपस्या की माता ने,
त्याग दिया जल अन्न,
कड़ी तपस्या माता ने की,
तब शिव जी हुए प्रसन्न,
आंखें खोलो है देवी जल्दी,
मांगो वरदान,
मांगो सोने चांदी हीरे या मांगो,
वेद पुराण,
माता बोली ये मोह माया है,
सभी त्यागती हूं,
मैं आपको अपने पति रूप में,
आपसे मांगती हूं।
भोले बाबा समझाने लगे,
तुम महलों की राजकुमारी,
ना रथ ना घोड़े पास मेरे,
करूं नंदी की स्वारी,
मेरा कोई नहीं ठिकाना देवी,
वन में रहता हूं,
कोई अच्छा कुंवर राजा का,
ढूंढ तुम्हें सत्य मैं कहता हूं,
मेरे गले में नाग लपेटा,
और हाथ में है त्रिशूल,
मेरे साथ में नंगे पाव चलोगी,
चुभेंगे कांटे शूल,
ऊंचे पर्वत पे ध्यान करूं,
कैलाश है मेरा डेरा,
डर जाओगी देवी देख,
मेरे इर्द गिर्द भूतों का घेरा।
बोली माता मैं सब सह,
लूंगी करती आपसे प्यार,
भोले बाबा प्रसन्न हुए,
किया माता को स्वीकार,
भोले बाबा पर प्रजापति,
का हद से बढ़ गया क्रोध,
यज्ञ रखा था प्रजापति ने,
लेने शिव से प्रतिशोध,
सब देव ऋषि को न्योता भेजा,
शिव से हो अनजान,
सती माता भी मोह माया में,
कर ना सकी ध्यान,
शिव से पूछा माता ने एक,
विनती है मेरे ईश,
मुण्डवाला ये धारण है इसमें,
किसके है शीश।
शिव आंखें भर कर बोले,
107 मुण्ड की माला,
बस एक शीश है बाकी,
फिर सब पूर्ण होने वाला,
ये सभी शीश तुम्हारे है,
तूम मोह माया से भटकी हो,
तुम ख़ुद को न पहचान पाई,
और मृत्यु लोक में अटकी हो,
तुम यज्ञ में मत जाना वरना,
होगा अपमान,
ये मृत्यु तुल्य होगा अपमान,
ले लोगी ख़ुद की जान,
गर यज्ञ में तुमको जाना है,
पहले शक्ति को जगाना है,
मैं तुमको बांध नहीं सकता,
जाओ गर तुमको जाना है।
माता ख़ुद पहचान सकी ना,
पिता के घर पर आई,
प्रजापति ने माता सत्ती को,
खरी खोटी सुनाई,
माता ना सह अपमान सकी,
अग्नि में दे दिये प्राण,
दक्ष का शीश काटने,
आये वीरभद्र भगवान,
माता के जलती देह को,
उठा शिव करने लगे विलाप,
शिव दुखी होके गर बैठ गये,
तो बढ़ जाएगा पाप,
शिव के दुख को दूर किया,
विष्णु ने युक्ति लगाई,
असुरों और अंधकार से ये,
सारी सृष्टि बचाई।
विष्णु जी ने सुदर्शन से,
माता सती का शव काट दिया,
जहां टुकड़े गिरे वहां पिण्ड बने,
शक्तिपीठों में बांट दिया,
माता ने जाते बोल दिया,
मैं वापिस लौट के आऊंगी,
हर जन्म मैं शिव को पाऊंगी,
शिव की शक्ति कहलाऊंगी,
मां पार्वती बन के लौटी,
करती थी शिव का जाप,
कामदेव जब भस्म हुए,
मिला पार्वती को श्राप,
रत्ती कामदेव की पत्नी थी,
बोली तू निसंतान रहे,
अब मेरी गोद रहेगी सुनी,
तू भी निस्तान रहे।
यें युगों युगों की प्रेम कथा,
इसमें ना कोई संदेह,
जब जब शिव का अपमान हुआ,
मां त्याग देती थी देह,
त्याग समर्पण दोनों में था,
मिलती हमको शिक्षा,
जन्मों जन्मों तक मां की,
शंभु करते थे प्रतीक्षा,
शिव से मिलने की खातिर,
पहले शून्य होना पड़ता है,
प्रेम की अग्नि में तप हीरे को,
अमूल्य होना पड़ता है,
है प्रेम वही जब बिन बोले,
प्रेमी को समझ में आये,
चाहे कितने भी मां रूप धरे,
शिव की शक्ति कहलाये।
शिव ने मां को अपनाया,
उनसे फिर व्याह रचाया,
अमरनाथ की गुफा में,
कथा सुना के अमर बनाया,
शिव ने मां को अपनाया,
उनसे फिर व्याह रचाया,
अमरनाथ की गुफा में,
कथा सुना के अमर बनाया।
गाथा तुम्हें सुनाता हूं,
अमर कथा ये शिव शक्ति की,
तुमको याद दिलाता हूं,
प्रजापति दक्ष के घर में,
दुर्गा ने अवतार लिया,
मात पिता ने सभी पुत्रियों,
से बढ़के उसे प्यार दिया,
अक्ल बुद्धि से परिपूर्ण,
जो मति से करती काम,
सुंदर चंचल सी कन्या का,
सत्ती पड़ गया नाम,
प्रजापति दक्ष करते केवल,
विष्णु की पूजा,
विष्णु जी के अलावा कोई,
आराध्य ना उनका दूजा।
जैसे ही माता बड़ी हुई,
कर बैठी शिव से प्यार,
पर प्रजापति ने शादी से,
कर दिया साफ़ इनकार,
पुत्री को समझाने लगे,
तू है महलों की रानी,
क्यों वनवासी के पीछे पड़ी,
मुझे होती है हैरानी,
यहां मखमल का बिस्तर है बेटी,
कांटो पर वहां सोयेगी,
तू बर्फ में थर्र थर्र कांपेगी,
हमे याद करके फिर रोयेगी,
जो ख़ुद भूखा बैठा है क्या,
तुझको ख़ाक खिलाएगा,
अघोरी है श्मशान वासी,
वो तुझको राख पिलायेगा।
लाख ताने सुनकर भी माता,
किसी की एक ना मानी,
शिव को ही पति वो मान बैठी,
शादी करने की ठानी,
कठोर तपस्या की माता ने,
त्याग दिया जल अन्न,
कड़ी तपस्या माता ने की,
तब शिव जी हुए प्रसन्न,
आंखें खोलो है देवी जल्दी,
मांगो वरदान,
मांगो सोने चांदी हीरे या मांगो,
वेद पुराण,
माता बोली ये मोह माया है,
सभी त्यागती हूं,
मैं आपको अपने पति रूप में,
आपसे मांगती हूं।
भोले बाबा समझाने लगे,
तुम महलों की राजकुमारी,
ना रथ ना घोड़े पास मेरे,
करूं नंदी की स्वारी,
मेरा कोई नहीं ठिकाना देवी,
वन में रहता हूं,
कोई अच्छा कुंवर राजा का,
ढूंढ तुम्हें सत्य मैं कहता हूं,
मेरे गले में नाग लपेटा,
और हाथ में है त्रिशूल,
मेरे साथ में नंगे पाव चलोगी,
चुभेंगे कांटे शूल,
ऊंचे पर्वत पे ध्यान करूं,
कैलाश है मेरा डेरा,
डर जाओगी देवी देख,
मेरे इर्द गिर्द भूतों का घेरा।
बोली माता मैं सब सह,
लूंगी करती आपसे प्यार,
भोले बाबा प्रसन्न हुए,
किया माता को स्वीकार,
भोले बाबा पर प्रजापति,
का हद से बढ़ गया क्रोध,
यज्ञ रखा था प्रजापति ने,
लेने शिव से प्रतिशोध,
सब देव ऋषि को न्योता भेजा,
शिव से हो अनजान,
सती माता भी मोह माया में,
कर ना सकी ध्यान,
शिव से पूछा माता ने एक,
विनती है मेरे ईश,
मुण्डवाला ये धारण है इसमें,
किसके है शीश।
शिव आंखें भर कर बोले,
107 मुण्ड की माला,
बस एक शीश है बाकी,
फिर सब पूर्ण होने वाला,
ये सभी शीश तुम्हारे है,
तूम मोह माया से भटकी हो,
तुम ख़ुद को न पहचान पाई,
और मृत्यु लोक में अटकी हो,
तुम यज्ञ में मत जाना वरना,
होगा अपमान,
ये मृत्यु तुल्य होगा अपमान,
ले लोगी ख़ुद की जान,
गर यज्ञ में तुमको जाना है,
पहले शक्ति को जगाना है,
मैं तुमको बांध नहीं सकता,
जाओ गर तुमको जाना है।
माता ख़ुद पहचान सकी ना,
पिता के घर पर आई,
प्रजापति ने माता सत्ती को,
खरी खोटी सुनाई,
माता ना सह अपमान सकी,
अग्नि में दे दिये प्राण,
दक्ष का शीश काटने,
आये वीरभद्र भगवान,
माता के जलती देह को,
उठा शिव करने लगे विलाप,
शिव दुखी होके गर बैठ गये,
तो बढ़ जाएगा पाप,
शिव के दुख को दूर किया,
विष्णु ने युक्ति लगाई,
असुरों और अंधकार से ये,
सारी सृष्टि बचाई।
विष्णु जी ने सुदर्शन से,
माता सती का शव काट दिया,
जहां टुकड़े गिरे वहां पिण्ड बने,
शक्तिपीठों में बांट दिया,
माता ने जाते बोल दिया,
मैं वापिस लौट के आऊंगी,
हर जन्म मैं शिव को पाऊंगी,
शिव की शक्ति कहलाऊंगी,
मां पार्वती बन के लौटी,
करती थी शिव का जाप,
कामदेव जब भस्म हुए,
मिला पार्वती को श्राप,
रत्ती कामदेव की पत्नी थी,
बोली तू निसंतान रहे,
अब मेरी गोद रहेगी सुनी,
तू भी निस्तान रहे।
यें युगों युगों की प्रेम कथा,
इसमें ना कोई संदेह,
जब जब शिव का अपमान हुआ,
मां त्याग देती थी देह,
त्याग समर्पण दोनों में था,
मिलती हमको शिक्षा,
जन्मों जन्मों तक मां की,
शंभु करते थे प्रतीक्षा,
शिव से मिलने की खातिर,
पहले शून्य होना पड़ता है,
प्रेम की अग्नि में तप हीरे को,
अमूल्य होना पड़ता है,
है प्रेम वही जब बिन बोले,
प्रेमी को समझ में आये,
चाहे कितने भी मां रूप धरे,
शिव की शक्ति कहलाये।
शिव ने मां को अपनाया,
उनसे फिर व्याह रचाया,
अमरनाथ की गुफा में,
कथा सुना के अमर बनाया,
शिव ने मां को अपनाया,
उनसे फिर व्याह रचाया,
अमरनाथ की गुफा में,
कथा सुना के अमर बनाया।
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Master - Ghor Sanatani
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यह ब्रह्मांड के पहले प्रेम की शिव और शक्ति की अमर प्रेमगाथा है। प्रजापति दक्ष के घर देवी दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया। जिन्हें माता-पिता ने अत्यधिक स्नेह दिया। वे बुद्धिमान, सुंदर और चंचल स्वभाव की थी, जिसे सती नाम मिला। प्रजापति दक्ष विष्णु जी के परम भक्त थे और केवल उन्हीं की पूजा करते थे। उनकी श्रद्धा में अन्य किसी देवता का स्थान नहीं था, इसलिए शिव को वे नहीं मानते थे। जय शिव शक्ति।