मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
वड्डे भागा नाल है मिलेया,
हीरे मोती नाल है जड़या,
चड़ी जवानी सर ते तेरे,
तंद सिमरन दा तू हैं फड़या,
सुत्ती पई गफलत दी नींदे,
सर ते सूरज चड़या चरखा सिमरन दा।
मै कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
कुछ सहेलियां ने तेरीयां,
कत कत ढेर लगाया,
कत कत के सिमरन दे,
तंद नू धयान दी वट्टी बनाया,
सुत्ती दी तू सुत्ती रहियो सुत्ती नु,
दिन चढ़ आया शावा चरखा सिमरन दा।
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
हट्टी दिति सतगुरु,
ताहि नाम दा चीर बनाया,
रह गयी सूती दी सुत्ती नहीं ने,
खोह विच्च जग है पाया
की मुख ले के जावेंगी जद,
लाड़ा मौत दा आया चरखा सिमरन दा।
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
तड़के उठ तू कुड़िये सिमरन दी माला बना ले,
पूरे गुरु तो नाम तू ले के मन दे तकले पा ले,
अंत वेले एही कम है औंदा,
बाकी सब लुट जांदा चरखा सिमरन दा,
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा।
रूह पर सुनी जदों,
चरखे दी मस्ती तैनू आऊं,
मस्ती मस्ती मस्ती दे विच्च,
सतगुरु नजर तैनू हैं आऊ,
कुल मालिक दी बेटी है तू एह,
तैनू समझावखि चरखा सिमरन दा,
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
गुरु कहे कत ले कुड़िये कत कत ढेर लगा ले,
बिना गुरु औ नाल ना जाई जाके दर्शन पाले,
दुःख सुख सारे ख़तम हो जावन,
जद सतगुरु गल लावे चरखा सिमरन दा।
मै कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
वड्डे भागा नाल है मिलेया,
हीरे मोती नाल है जड़या,
चड़ी जवानी सर ते तेरे,
तंद सिमरन दा तू हैं फड़या,
सुत्ती पई गफलत दी नींदे,
सर ते सूरज चड़या चरखा सिमरन दा।
मै कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
कुछ सहेलियां ने तेरीयां,
कत कत ढेर लगाया,
कत कत के सिमरन दे,
तंद नू धयान दी वट्टी बनाया,
सुत्ती दी तू सुत्ती रहियो सुत्ती नु,
दिन चढ़ आया शावा चरखा सिमरन दा।
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
हट्टी दिति सतगुरु,
ताहि नाम दा चीर बनाया,
रह गयी सूती दी सुत्ती नहीं ने,
खोह विच्च जग है पाया
की मुख ले के जावेंगी जद,
लाड़ा मौत दा आया चरखा सिमरन दा।
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
तड़के उठ तू कुड़िये सिमरन दी माला बना ले,
पूरे गुरु तो नाम तू ले के मन दे तकले पा ले,
अंत वेले एही कम है औंदा,
बाकी सब लुट जांदा चरखा सिमरन दा,
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा।
रूह पर सुनी जदों,
चरखे दी मस्ती तैनू आऊं,
मस्ती मस्ती मस्ती दे विच्च,
सतगुरु नजर तैनू हैं आऊ,
कुल मालिक दी बेटी है तू एह,
तैनू समझावखि चरखा सिमरन दा,
मैं कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
गुरु कहे कत ले कुड़िये कत कत ढेर लगा ले,
बिना गुरु औ नाल ना जाई जाके दर्शन पाले,
दुःख सुख सारे ख़तम हो जावन,
जद सतगुरु गल लावे चरखा सिमरन दा।
मै कता प्रीता नाल चरखा सिमरन दा,
चरखा सिमरन दा चरखा सिमरन दा।
आत्मिक जागरूकता और नाम सिमरन बहुत महत्वपूर्ण होता है। नाम का सिमरन करना ऐसा है जैसे कोई प्रेम से चरखा कातता है। यह जीवन का सच्चा कार्य है जो केवल भाग्यशाली लोगों को मिलता है। जो इसे अपनाते हैं वे आत्मिक धन से भर जाते हैं। सच्चे गुरु की शरण में जाकर जो सिमरन करता है वही जीवन में सफल होता है और अंत समय में भी वही उसे पार लगाता है। जीवन की बाकी सभी चीज़ें नष्ट हो जाती हैं लेकिन नाम सिमरन किया हुआ ही अंत में साथ जाता है। जय सतगुरु।
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नींद और गफलत से भरे जीवन में सिमरन का सूरज चढ़ने का भाव है। यह ऐसा है जैसे कोई सुबह की किरणों में नई उम्मीद देखता है। सहेलियों का जिक्र उस सत्संग का प्रतीक है, जो भक्त को सिमरन की राह पर ले जाता है। जैसे दोस्त मिलकर काम को आसान करते हैं, वैसे ही सत्संग में सिमरन की तंद को धागे में पिरोया जाता है, जो मन को एकाग्र करता है।